कचरे से कमा रहा है लाखों – गन्ने की खोई और फलों के अवशेषों से शुरू किया करोड़ों का कारोबार, जानिए कैसे

कचरे से कमा रहा है लाखों – गन्ने की खोई और फलों के अवशेषों से शुरू किया करोड़ों का कारोबार, जानिए कैसे बना यह युवा उद्यमी मिसाल

आज का युवा अगर ठान ले तो नामुमकिन कुछ भी नहीं। एक समय था जब लोग फल-सब्जी के कचरे या गन्ने की खोई (bagasse) को सिर्फ फेंकने लायक समझते थे, लेकिन एक होशियार युवा ने इसी बेकार समझे जाने वाले कचरे से लाखों रुपए कमाने वाला बिजनेस खड़ा कर दिया। यह कहानी है एक ऐसे युवा उद्यमी की जिसने फलों के छिलकों, गन्ने की खोई और जैविक अपशिष्ट से शुरुआत की और आज सफलता की मिसाल बन गया है।

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कचरे

🌱 शुरुआत कैसे हुई?

यह युवा एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार से था। घर में गन्ना उत्पादन होता था और हर बार खोई (गन्ने की पेराई के बाद बचा रेशा) बेकार समझकर या तो जला दी जाती थी या फेंक दी जाती थी। इसी दौरान उसने रिसर्च किया और जाना कि गन्ने की खोई का उपयोग:

  • बायोडीग्रेडेबल प्लेट्स और कटोरियों में,
  • ऑर्गेनिक खाद में,
  • कागज बनाने में,
  • बायोकोल या ब्रिकेट्स बनाने में किया जा सकता है।

यहीं से उसकी उद्यमशीलता की यात्रा शुरू हुई।

🧪 फलों के कचरे और खोई का उपयोग कैसे किया?

1. ऑर्गेनिक खाद (Vermicompost) का निर्माण

  • फल-सब्जी के छिलके, पत्तियाँ और गन्ने की खोई मिलाकर कम्पोस्टिंग यूनिट बनाई।
  • इसमें केंचुओं की मदद से उच्च गुणवत्ता वाली वर्मी कम्पोस्ट खाद तैयार की जाती है।

2. बायोडीग्रेडेबल प्लेट्स/कटोरी

  • गन्ने की खोई को मशीनों में प्रोसेस कर के इको-फ्रेंडली प्लेट्स और पैकिंग मटीरियल बनाया गया।
  • आज के समय में प्लास्टिक बैन के कारण इनकी बाजार में भारी मांग है।

3. ब्रिकेट्स (Biofuel) बनाना

  • खोई को सुखाकर बायोफ्यूल ब्रिकेट्स में बदला गया, जो लकड़ी या कोयले का पर्यावरण अनुकूल विकल्प है।
  • ये छोटे उद्योगों और बेकरी/होटल्स में जलावन के रूप में काम आते हैं।

💼 कैसे शुरू किया कारोबार?

  • शुरुआत की एक छोटे स्तर से, घर के आंगन में एक कम्पोस्ट पिट बनाकर।
  • फिर स्थानीय सब्जी मंडी और जूस की दुकानों से फलों का कचरा इकट्ठा करना शुरू किया।
  • 50,000 रुपये की छोटी सी पूंजी से केंचुआ खाद, खोई का उपयोग और बायोप्रोडक्ट बनाना शुरू किया।

💰 अब कितना मुनाफा हो रहा है?

उत्पादलागत (प्रति किलो)बिक्री मूल्यमुनाफा
वर्मी कम्पोस्ट₹3-4₹10-15200-300%
ब्रिकेट्स₹5₹10-12100-150%
खोई की प्लेट्स₹1-2₹3-5150-200%

अब यह युवा हर महीने 1.5 से 2 लाख रुपये तक का लाभ कमा रहा है।

🏭 कहां-कहां से मिल रही है मदद?

  • कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) से प्रशिक्षण
  • स्टार्टअप इंडिया योजना से सब्सिडी और गाइडेंस
  • स्थानीय पंचायत से भूमि और कचरा प्रबंधन की सुविधा

🧑‍🌾 किस-किस क्षेत्र में विस्तार किया?

  • स्कूलों, होटलों और होम गार्डनर्स को ऑर्गेनिक खाद की सप्लाई
  • इको-फ्रेंडली शादी समारोहों के लिए बायोडीग्रेडेबल प्लेट्स
  • स्थानीय किसानों के लिए जैविक खेती उत्पाद

🌍 पर्यावरण को क्या लाभ?

  • हर महीने 2–3 टन जैविक कचरा रिसायकल होता है।
  • प्लास्टिक के विकल्प के रूप में इको-फ्रेंडली सामग्री का उपयोग बढ़ा।
  • कचरे को जलाने से निकलने वाला धुआँ और प्रदूषण रोका गया।

📈 क्या आप भी शुरू कर सकते हैं ऐसा बिजनेस?

बिलकुल! अगर आपके पास थोड़ी सी ज़मीन, मेहनत का जज़्बा और जैविक कचरे का स्रोत है, तो आप भी यह बिजनेस शुरू कर सकते हैं।

🧠 शुरू करने के लिए जरूरी बातें

✔ क्या चाहिए?

  • जगह (100-200 वर्ग मीटर)
  • कचरे का स्रोत (जूस शॉप, मंडी, गन्ना मिल)
  • मशीनरी (बायोफ्यूल ब्रिकेट प्रेस, प्लेट मेकर)
  • वर्मी बेड और केंचुए
  • मार्केटिंग स्किल

✔ कहाँ से सीखें?

  • कृषि विज्ञान केंद्र (KVK)
  • Krishi Vigyan YouTube चैनल
  • MSME स्टार्टअप ट्रेनिंग प्रोग्राम

❓ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

Q1: क्या गन्ने की खोई मुफ्त में मिल सकती है?

हाँ, अधिकतर जूस सेंटर या शुगर मिल इसे वेस्ट मानकर फेंक देते हैं, आप उनसे फ्री में ले सकते हैं।

Q2: इस बिजनेस में कितना निवेश चाहिए?

प्रारंभिक निवेश ₹40,000 से ₹1 लाख के बीच हो सकता है।

Q3: उत्पाद बेचेंगे कहां?

  • लोकल मंडी
  • कृषि मेलों में
  • Amazon/Flipkart पर ऑर्गेनिक प्रोडक्ट कैटेगरी में

Q4: क्या सरकार से सब्सिडी मिल सकती है?

हाँ, MSME और Startup India योजनाओं के तहत सब्सिडी व लोन की सुविधा उपलब्ध है।

Q5: केंचुए कहां से मिलते हैं?

कृषि विज्ञान केंद्र या ऑनलाइन पोर्टल जैसे agrostar, krushikendra आदि से मिल सकते हैं।

🔚 निष्कर्ष

कहते हैं “जहाँ चाह, वहाँ राह” – इस युवा की सफलता इस कहावत का सटीक उदाहरण है। जिस चीज़ को लोग कचरा समझते थे, उसने उसी से अपने सपनों का साम्राज्य खड़ा कर दिया। यह कहानी न सिर्फ प्रेरणा देती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि अगर नजरिया बदलो, तो कचरा भी किस्मत बदल सकता है

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